डर की राजनीति
सत्तालोलुपता सरकारों में असुरक्षा का डर पैदा करती है, जिसके फलस्वरूप ऐसी सरकारों की यह कोशिश रहती है कि लोकतंत्र में बोलने वालों को, सही और गलत का पर्दाफाश करने वालों को भी डराया जाय। डरा कर उन पर अंकुश लगाया जाय की वे सवाल न करें। सरकार मीडिया को डरा कर अपने नियंत्रण में लेती है। डरा हुआ मीडिया का डरे हुए पत्रकार की टोली होती है और यह डरा हुआ पत्रकार मरा हुआ नागरिक पैदा करता है। इसी लिए बोलने वालों को पुलिस द्वारा उठवा लिया जाता है, सूचीबध धाराओं के तहत FIR दर्ज किए जाते है, नौकरी से हटवाए जाते है जिनके कारण हमारी नागरिकता को कमज़ोर की जाती है। लोकतंत्र में नागरिक का दायित्व निभाने के लिये जानना और पूछना हर नागरिक की दो बुनियादी ज़रूरते हैं। जो नागरिक डर के कारण सवाल करने से परहेज़ करते है वे भूल जाते है कि देश संविधान से चलता है, न कि देश के शीर्ष पर बैठे लोगों की मनमानी से। एक नागरिक होते हुए भी हम डरते तब है जब हम अपने अधिकारों से या तो परिचित नहीं होते या हम अपने अधिकारों को कम जानने लगे हैं, अपने इरादों को, अपने भावनाओं को हम कम पहचानने लगे हैं। एक नागरिक डरता ही तब है जब वह खु...