हमारे पूर्व उपराष्ट्रपति महम्मद हामिद अंसारी

हमारे पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी एक बरिष्ट विद्वान भारतीय नागरिक है। उन्होंने संविधान द्वारा हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के प्रदान की जाने वाली अवसरों को अपने काबिलियत से अपने जीवन काल मे उच्चतम मुकाम हासिल किया। इसमे बहुसंख्यकों का किसी भी तरह का एहसान नही है। 

राष्ट्रवाद के नाम पर देश को बहुसंख्यकवाद और तानाशाही के तरीकों को इस तरह कभी नही परोसा गया जैसा कि आजकल हो रहा है। आज का राष्ट्रवाद एक दुश्मन ढूंढता है। आज का राष्ट्रवाद देश प्रेम को साबित करने के लिए भी दुश्मन ढूंढता है। चरम राष्ट्रवाद हमे आक्रामकता की ओर धकेलती है, देश भक्ति देशप्रेम की ओर. जिस तरह से आज भाषा, धर्म और संस्कृति के नाम पर एकरूपता या uniformity का प्रचार किया व परोसा जा रहा है यह अब हमारे  national life का हिस्सा बन गया है। लोग इस तरह के कलुषित मानसिकता का शिकार हो रहे है जहां एक ही तरह के नारे होते है, एक ही तरह की भाषा, खान पान व पहनावा होगा और यह हम सब जान रहे है कि वह किस तरह की होगी जबकि विविधता हमारे देश की एक सच्चाई है। विविधता को रौंदने का प्रयास का मतलब संविधान की हत्या का प्रयास -- जो शुरू हो चुका है। हमारा संविधान हमे इस तरह की एकरूपता की इजाज़त नही देता। धर्म निरपेक्षता व अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति को बहुसंख्यकों द्वारा तुष्टिकरण का आरोप लगाना बेमानी है।

यह बहुसंख्यकों का बहुत ही घटिया सोच है कि मालिकाना हक केवल एक बहुसंख्यक समुदाय का है और जो अल्पसंख्यक को मिलता है वह बहुसंख्यक द्वारा दिया गया एक एहसान है। आज हामिद अंसारी जैसे लोगों को एहसान फरामोश इसलये कहा जा रहा है क्योंकि उन्होंने सरकार के साम्प्रदायिक रवैये पर सवाल उठाये। सवाल तो यह है कि क्या काबिलियत का कोई स्थान नही? स्कूल व विश्वविद्यालय की कामयाबी से ले कर बड़े बड़े औधौं को संभालने की कामयाबी अपने काबिलियत से आती है, न कि किसी समुदाय के एहसान से। हमारे संविधान का प्रस्तावना (Preamble) भाईचारा (Fraternity) को गुरुत्व देने की आश्वासन देती है. हमारा संविधान धर्म निरपेक्ष है। हर जाति धर्म के लोगो को प्रश्न करने की  इजाज़त हमारा संविधान देती है। सच्चर कमेटी भी अल्पसंख्यको की शशक्तिकरण की बात करता है लेकिन आज की राजनीति सामाजिक, शेक्षणिक शशक्तिकरण को बहुसंख्यक का एहसान मानती है। आज कमज़ोर वर्ग के खिलाफ बहुसंख्यकों द्वारा राजनीति हो रही है। यही वह बहुसंख्यक है जो हामिद अंसारी को ऐहसान फरामोश कह कर उनकी छवि बिगाड़ रही है क्योंकि वह देश से सब कुछ पाने के बावजूद भी मुसलमानों को असुरक्षित बताते है। प्रधान मंत्री मोदी भी पीछे नही है।

देश ने उन्हें हर उच्चतम शिखर तक पहुचने का अवसर दिया। पर यह तो मानना पड़ेगा कि उन्होंने अवसर की कामयाबी अपनी काबिलियत से हासिल की। तो क्या एक शुष्ट दिमाग अपने आसपास हो रहे विसंगतियों पर अपना विचार ही नही रख सकता? क्योंकि वह एक अल्पसंख्यक है, मुसलमान है?

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