पेगासस द्वारा हमारे लोकतंत्र पर हमला
संकटग्रस्त आर्थिक हालात वाले देश मे विपक्ष और पत्रकारिता पर निगरानी करने की ये पेगासस के हमले की खबर अती भयानक है। यह कहानी चोर दरवाज़े से लोकतंत्र को रौंद कर मिट्टी में मिला देने की है। पेगासस से फोन की जासूसी का सम्बंध केवल जानकारी की चोरी करने की नही है बल्कि किसी निर्दोष को हत्या के इरादे और आतंकवाद के आरोप में फँसा देने का भी है।
वैसे भी एक सही सूचना के बिना एक नागरिक नागरिक नही होता है। दुनिया भर की अखबारों में अपने लोगों की जासूसी कराने बाले देश अगर रवांडा, अज़रबैजान के साथ भारत की वाहवाही छपी है और आप इसे वाहवाही समझते है तो समझ लीजिये।
पेगासस जासूसी कांड के संदर्भ में सबसे बड़ी समझने वाली बात यह है कि इस तरह के software या spyware से खबरें जुटाने वाले sources या सूत्रों से जुड़े लोगों को खतरा तो होता ही है, उससे बड़ा खतरा पत्रकारों के बीच जैसे भय फैलता है उससे जो असर भारतीय लोकतंत्र पर पड़ेगा हमारे लोकतंत्र को और कमज़ोर करेगा। लोकतंत्र में नागरिक की जासूसी! बड़े शर्म की बात है। इससे अविश्वाश गहरा होता है। क्या एक नागरिक को सरकार से सवाल करने पर और एक पत्रकार को एक खबर लिखने के लिये इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। अगर सूचनाओं को जानने के लिए अखबार, पत्र, पत्रिकाओं और media chanel को दाम देकर पत्रकारों के नाम पर गुलामों की लिखी खबर पढ़नी है तो हम इस तरह के सूचना के साधनों की सदस्यता क्यों खरीदतें हैं? तो क्या आप बतौर नागरिक केवल चुप रहिएगा? आपके नागरिक बने रहने का अस्तित्व का स्तर गिर कर इतना रह गया है कि आप केवल troll forward, reforward करते रहेंगे। लोकतंत्र का क्या है? खत्म हो जाय तो होने दीजिये। डरे रहिये, मरे रहिये। जिनको असल मे जेल जाना चाहिए उन्हें बचाते रहिये।
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