वर्ष 2022 : नई पीढ़ी को गढ़ने की चुनौती

आज हम सभी साल 2022 में प्रवेश किया है। चलिए देखा जाय कि पिछले 1 वर्ष में हमारा दसरों के प्रति सौहार्द का स्तर कैसा रहा। इस मे कोई दो राय नही की आज का दौर भारत के इतिहास में एक अलग तरह से दर्ज हो रहा है। हमने 2014 से पहले की भी स्तिथियाँ देखीं और आज भी देख रहे हैं। बहुत कुछ जो बदल गया है या जो बदल रहा है या यह समझे कि जिन बदलावों को झेलना पड़ रहा है, इस परिपेक्ष में हम जैसे सम्वेदनशील लोग अपने आप को किस तरह से इस फर्क को अपने आप से अलग रखते है या सामना करते हैं, अपने आप में एक बड़ा सवाल है। अंध भक्ति के कारण रिश्ते बिगड़ रहे हैं। माहौल ऐसे बदला की जो छुपी नही है। जिन लोगों से हमारी बहुत दोस्तियां थी, अच्छे पारिवारिक व अत्यंत करीबी सम्बन्ध थे, नाते रिश्तेदारियों में बेहद सौहार्दपूर्ण वातावरण था, घण्टों एक साथ गपियाते थे, आत्मीय रिश्तों के बीच कहीं सियासत नही आती थी और एक दूसरे के पसंदिता सियासती रुची-रुझानों व सोच को लेकर न ही किसी तरह का पारस्परिक द्वेष पैदा की जाती थी, आज वैसी न तो परिस्थिति है और न ही वातावरण है। पूरा परिवेश विषाक्त होता जा रहा है। 

बहस पहले भी होती थी, पर बिना किसी कड़वाहट के। विचारों का मतभेद का इजहार धर्म और नफरती बहस से नही होती थी। रिश्तों में कड़वाहट न होने का असली कारण ही यही था कि सबके विचारों का सम्मान होता था। प्रशाशन और सत्ता से आम लोग तभ भी और पूरे बेबागी से तीखे सवाल पूछते थे। आज social media फैंसी और फेसबुकिया ज्ञान के कारण हर तरह की कटुता, साम्प्रदायिक घृणा के messages व वीडियो से लिप्त रहती हैं। भड़काने वाले troll प्रेषित किये जाते हैं। और लोग इन सब को सही ठहराते है। हमारे आपसी बातचीत में भी हम जैसे लोगों को चिन्हित किया जाता क्योंकि उन्हें हमारे प्रशाशन या सत्तानसीनों से सवाल करने की प्रवृति नापसन्द है। जीसके फलस्वरूप रिश्तों में खटास आ रही है। यदि कोई सत्ता का समर्थक नही है, मोदी के पक्के वाले भक्त नही है तो उसे देश के विरोध में समझा जाता है। वह देशद्रोही है, पाकिस्तानी है, अर्बन नक्सल है, आतंकवादी है। मोदी भक्तों के लिए मोदी जी ही देश है, मोदी जी ही संविधान है, मोदी जी ही कानून है और देश की चौहद्दी मोदी की सोच तक ही सीमित है। 

पहले जिस तरह बहस में राय रखने के प्रति जो प्रजातांत्रिक आज़ादी थी और जो सम्मान दिया जाता था उसमे जिद्दीपन, जनून और नफरत की जगह कम थी। मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि आप सब स्कूल, कालेज, मोहोल्ला, दफ्तर व कामकाज के स्थलों में नफरती जनून से यकीनन आमना सामना होते होंगे। यहां तक देखा गया है कि आपके अपनों की अंत्येष्ठि अनुष्ठानों पर आपके करीबीयों का अनुपस्थिति का कारण भी यही होता है कि आप मोदी को हमेशा सवालों के कठघरे में खड़ा करते रहे है। आजकल न केवल social media में अपितु पारिवारिक महफिलों या अनुष्ठानों में और यहाँ तक कि शादी ब्याह में भी मोदी, योगी, शाह पर बात होते होते plate फेंका-फेकि हो जाती है।

किसानों ने विरोध किया तो उन्हें भी खालिस्तानी तक कह दिया। उन पर लाठियां भांजी जाती है, गाड़ियों के तले रौंद कर उन्हें मौत के घाट उतार दिए जाते हैं और बाद में इन्ही "खालिस्तानियों" व "आतंकवादियों" के पक्ष में तीनों काले कानून वापस लिए जाते हैं। 

अब तो एक के बाद एक भगवाधारी साधु समूह धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं जिनमे वे गाली गलौच और साम्प्रदायिक हिंसा की भाषा बोल रहें हैं। महात्मा गांधी को गाली देते है और इन्ही खुले मंच से गांधी के हत्यारे गोडसे की महिमा मंडन करते है। गोडसे जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। प्रशाशन इन पर कोई कानूनी कार्यवाही नही करती, चाहे उत्तराखण्ड का हरिद्वार या छत्तीसगढ़ का विवादित धर्म संसद हो। आज बोलने वाले को इतना गुमान हो गया है कि वह किसी को सुनना ही नही चाहता है। ऐसा लगता है कि इस देश मे अब कोई सुनने वाला नही, सिर्फ बोलने वाला है। 

मैं फिर दौराह रहा हूँ, हम अब 2022 में प्रवेश कर चुके हैं। हम आज भी उस माहौल में है जहां सुनने वाला डरा रहता है। जो भी अपनी प्रतिक्रिया या सवाल उठाता हैं बोलने वाला गाली गलोच करता है, अभद्र भाषा व व्वहार का प्रयोग करता है, बलात्कार, हिंसा और मरने-मारने की धमकी देता है। तो हम कैसे अपने को इस तरह के दबाव वाले माहौल से अपने को अलग रखते है या सामना करते है। क्योकि विचारो की असहमति में कट्टरपन ने अपनी एक अलग जगह बना ली है। जो पहले हिन्दू होने में गर्व मानता था आज वह हिंदुत्व की परिभाषा बताता है,  जबरदस्ती थोपने की कोशिश कर रहा है। हमारी नागरिकता पर एक विचार को लेकर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस दबाव से विचलित न हो कर हमे उल्टा अच्छे, समानता वाले, धर्म-जाती से अलग समावेशी और मानवतावादी विचारों का उल्टा दबाव उनपर निडर हो कर डालना चाहिए। 

इतिहास का ऐसा पुनरलेखन किया जा रहा है की गोडसे महान हो, सावरकर महान हो, मोदी महान हो, योगी महान हो और वे सारे महामंडलेश्वर जो हरिद्वार में धर्म संसद में इकट्ठे हुए और जो मरने-मारने की बातें कर रहे थे, वे ही हिन्दुत्व के रक्षक हो। देश हिन्दुराष्ट्र बन जय ऐसी स्थियाँ, ऐसा narrative और ऐसा वैचारगी जब गड़ी जा रही हो और ऐसी परिस्थितियों को गढ़ने में जब साशन और प्रसाशन का प्रश्रय हो तब हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि हम बोले और आगे आने वाली पीढ़ी को इस फैलती नफरती आंधी से बचाये। इस नव वर्ष में यह सोचना बहुत ज़रूरी है कि हमे अपने बच्चों को कैसी सोच व परवरिश देनी है, कैसा माहौल देना है, वह किस तरह की किताबें पढ़े, किस तरह से देश के इतिहास को समझे, देश के महापुरषों के योगदान को समझे जिंन्होने देश की आज़ादी में आहूती दी है, हर तरह से उनको समझे; और सबसे बड़ी बात देश के संविधान को समझे। यह देश संविधान से चलेगा, भगवाधारीयों के उस धर्म संसद के एलान से नही चलेगा। वह संविधान जो बाबा साहेब अंबेडकर ने बनाया; वह संविधान जिसका ज़िक्र प्रधान मंत्री मोदी करते हैं; वह संविधान जिसकी कसमे संसद में खाई जाती है -- शपथ लेने से लेकर अपने कार्य के निर्वाह तक के लिये। परन्तु ऐसी धर्म संसद संविधान की धज्जियां उड़ा देते है। जब मोदी और योगी के भाषणों में चुनाव के दौरान श्मशान और कब्रिस्तान के नारे लगेंगे तब आपको लगने लगेगा हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और होते है। तो आपको लगना चाहिए और 2022 के नव वर्ष में आप को संकल्प लेना चाहिए कि आप किस तरह से अपने बच्चों को क्या पढ़ाए की इस बदलते परिवेश में भी उनका दिल और दिमाग खुला रहे और निर्णय लेने की उनकी अपनी क्षमता हो।  

Comments

Popular posts from this blog

G20 Summit 2023 and challenges to India’s Presidency

Russia-Ukraine Conflict

BJP PROMOTING CONSPICUOUS COMMUNAL NARRATIVE